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"मत काट, परिंदे रोते हैं!"

नव  पल्लव , तरुगण  डोल  रहे ,
कटु  जीवन में  मधु    घोल  रहे ,
वन , विटप - लता, तृण - हरियाली -
श्रृंगार  धरा  के  होते   हैं  !
मत  काट ,  परिंदे  रोते  हैं !


चिर  वसन्त  की  आभा  लेकर ,
नव  जीवन  की   आशा  लेकर ,
फूल  यहां  पर  खिलते  निशिदिन
अलियों  के  दल  होते   हैं  !
मत  काट , परिंदे रोते   हैं  !

झोंके  मंद  पवन  के   आते ,
तन - मन पुलकित  करके जाते ,
सौरभ - सुषमा  मिलती  इनसे -
ताप - नियंत्रण  होते  हैं !
मत  काट , परिंदे   रोते  हैं  !

घन  पल्लव  कानन  मन  लूटे ,
जिनपर  चिड़ियों  के  दल  टूटे ,
शोभा अद्भुत  वटवृक्षों  की ,
चिर  निर्विकार  जो   होते  हैं  !
मत  काट , परिंदे  रोते  हैं  !

जो  तरुवर  झरझर  लहराते ,
बहु  पत्र - पताके  फहराते ,
परिधान  वही  हैं  धरती  के -
उपकार  उन्हीं  से  होते  हैं  !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

तरु- गुल्म-लताओं के गहने,
चुपचाप धरा ने फिर पहने,
भू  पर जन्मे - ये कुदरत के
अनमोल धरोहर   होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

चिर पतझड़  ऐसा  आया था,
धरती का दिल भर आया था,
नील गगन में तब से झिलमिल
तारों के दल होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

जीवन के पथ की ज्योति भली,
मरुथल में भी खिल गई कली,
है धन्य धरा जिसको पाकर
ये फूल फबीले होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

यहां बसती फूलों की बस्ती,
मर-मिटने वालों की हस्ती,
सुन्दर वन है एक मगर ये-
फूल असंख्यक होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

जीवन के हर सूने क्षण में,
जंगल में हों, या मधुवन में
झूम-झपक कर देखो कैसे-
हर्ष-विकंपित होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

रस जीवन का खींच-खींचकर,
खड़े हुए हम इनके बल पर,
प्राण सभी को मिलता इनसे-
जीवन के हल होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

नंदन वन में उगने वाले,
जगती को खुश करने वाले,
मानवता के फूल मनोहर-
बुद्ध यहीं पर होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

नव चीर धरा को पहनाते,
हर व्याकुल मन को बहलाते,
नव गीत यही हैं जीवन के-
संगीत मधुरतम होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

देख धरा का अंचल धानी,
अंबर भी भर लाता पानी,
तब दोनों के बीच परस्पर-
योग मिलन के होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

घन अंचल में जल भर लाते,
मधुकर मधु पी-पीकर गाते,
गर्भ धरा का भरता इनसे-
जल-संवर्धन होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

थक पंथी जब रुक जाता है,
स्वर्ग ही मानो झुक जाता है,
हर लेते ये पीर पुरातन,
सत्य-सनातन होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

यह कौन हमें छूकर जाता,
फूलों से गोदी भर जाता,
खुल द्वार गए तब जीवन के,
कलियों के दर्शन होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

वन-फूल यहां के मुसकाते,
जीवन की मदिरा छलकाते,
छक जाते हम पीकर जिनको-
जड़ भी चेतन होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

ये वृक्ष जहां भी लग जाते,
सौभाग्य वहां के जग जाते,
मिट जाते सब शाप समय के,
दुःख भी ओझल होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

हम देख जहां तक पाते हैं,
हर वृक्ष यहां मदमाते हैं,
झरझर झरते फूल बसंती,
मत्त समीरण होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

कहने को है मधुमास वहां,
बढ़ जाती लेकिन प्यास वहां,
आकर देखो, एक बार यहां-
हम तृप्त जहां पर होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

सुख-दुख दोनों स्वीकार जहां,
खोकर मिलता है प्यार जहां,
दिन में होती मधु-रात वहां,
मधुमास वहीं पर होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

हर स्वप्न हुए साकार जहां,
खुलकर होते अभिसार जहां,
होता जीवन चिर स्वस्थ वहां-
उपचार सभी के होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !


"मत काट, परिंदे रोते हैं!"

ये नूतन वन, ये वल्लरियां
हंसकर कहती हैं पंखुरियां-
सौरभ के खुलते गांठ यहां
मधुगीत अमन के होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

ये सुरभित वन, ये हरियाली
डाली से लिपटी नव डाली,
चोली मसकी मृदु कलियों की,
मधुगान मनोहर होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

सुन्दर सुरभित फूल खिलाकर,
जी भर कर लो इनका आदर,
करता जग व्यापार,मगर ये-
जीवन के धन होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

है एक सुमन जब झर जाता,
संसार सुरभिमय कर जाता,
रुक जाता तब काल-कुटिल भी,
युग-परिवर्तन होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

वह देख विहंगम है जाता,
जाते-जाते कुछ कह जाता,
जीवन भी है तब तक, जब तक-
वृक्ष धरा पर होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

जब वृन्त पतन के झर जाते,
लघु बीज असंख्यक गल जाते,
तब जीवन के अंकुर निकले,
जो घन श्यामल होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

पतझर में सब झर जाता है,
मधुवन फिर से भर जाता है,
हो जाता है जीवन मधुमय,
वृक्ष हरे जब होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

पतझड़ नूतन लेकर आता,
क्रंदन में कूजन कर जाता,
नव जीवन का नियम यही,
जब पात पुराने होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

मिट्टी में जो मिल सकते हैं,
वह जीवन में खिल सकते हैं,
चख लेते विष जीवन का जो-
वह मृत्युंजय होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

मधुवन में कोयल कूक रही,
हमसे-तुमसे कुछ पूछ रही,
बन,बाग़-बगीचे कहां गए-
फल जिनके मीठे होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

अब कौन यहां पीने आता,
जो हम सबको यह बतलाता-
परिमल-पुष्प-लताओं से ही
मधुवन सुरभित होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

अब कोई भी ठांव नहीं है,
मेघों की घन छांव नहीं है,
भू पर बढ़ता ताप, विहंगम-
तरुतल शीतल होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

अब क्योंकर बुलबुल गाएगी,
मत देख, नज़र लग जाएगी,
तरु-डाल-पात पर चिड़ियों के-
सुखधाम भला क्यों होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

जब-जब टूटे फूल बिचारे,
कांपे नील गगन के तारे,
जड़-चेतन सब एक नियम
से ही संचालित होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

अब शूल कहीं मिलते ही नहीं,
अब फूल कहीं खिलते ही नहीं,
होता ही नहीं लहरों का मिलन,
अब रेत के टीले होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

जब सूख धरा यह जाएगी,
कोयल न कुहुक फिर पाएगी,
जीवन के बदले जीवन के
परिदान इन्हीं से होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

थी मधुमय मोहक तान यहां,
नव नीड़ भी थे,मुस्कान यहां
थी कभी चहकती प्रात यहां,
अब घात उन्हीं से होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

होगा जग-जीवन अरथी पर,
यदि वृक्ष न होंगे धरती पर,
स्वप्न - सुमन भी वृक्ष बिना-
चिरसुप्त-विमूर्च्छित होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

तन-मन मानो अब झुलस गया,
कवि-कोमल जीवन झुलस गया,
वह पावन गंगा कहां गई,
अब कहां भगीरथ होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !

जो देते जीवन-दान तुम्हें,
देते रहना सम्मान उन्हें,
देंगे सौरभ-दान वही, जो -
लघु से लघुतम होते हैं !
मत  काट , परिंदे  रोते   हैं  !
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2 Comments

Ramsewak gupta

01-Nov-2021 11:21 AM

बहुत खूब

Reply

Virendra Pratap Singh

02-Nov-2021 12:24 PM

Thanks for likening and comment.

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